दोस्त Poetry (page 7)

इज़हार-ए-इश्क़ उस से न करना था 'शेफ़्ता'

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

जो कू-ए-दोस्त को जाऊँ तो पासबाँ के लिए

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

है बद बला किसी को ग़म-ए-जावेदाँ न हो

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

कभी जंगल कभी सहरा कभी दरिया लिख्खा

शीन काफ़ निज़ाम

मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए

शाज़ तमकनत

ज़मीं का क़र्ज़

शाज़ तमकनत

वो कौन है जिस की वहशत पर सुनते हैं कि जंगल रोता है

शाज़ तमकनत

मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए

शाज़ तमकनत

राह-ए-वफ़ा में साया-ए-दीवार-ओ-दर भी है

शायान क़ुरैशी

नहीं ज़माने में हासिल कहीं ठिकाना मुझे

शौक़ जालंधरी

ये हसीं होंगे मेहरबाँ मिरे ब'अद

शौक़ बहराइची

नई बज़्म-ए-ऐश-ओ-नशात में ये मरज़ सुना है कि आम है

शौक़ बहराइची

न जब देखी गई मेरी तड़प मेरी परेशानी

शौक़ बहराइची

मंज़िल है कठिन कम ज़ाद-ए-सफ़र मालूम नहीं क्या होना है

शौक़ बहराइची

मह-जबीनों की मोहब्बत का नतीजा न मिला

शौक़ बहराइची

किया जो ए'तिबार उन पर मरीज़-ए-शाम-ए-हिज्राँ ने

शौक़ बहराइची

जो मस्त-ए-जाम-ए-बादा-ए-इरफ़ाँ न हो सका

शौक़ बहराइची

हो कैसे किसी वादे का इक़रार रजिस्टर्ड

शौक़ बहराइची

गुर बुत-ए-कम-सिन दाम बिछाए

शौक़ बहराइची

ऐ हम-सफ़ीर तलख़ी-ए-तर्ज़-ए-बयाँ न छोड़

शौक़ बहराइची

मश्वरों से भरी अलमारी

शौकत आबिदी

दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी

शरफ़ मुजद्दिदी

मिली जो दिल को ख़ुशी तो ख़ुशी से घबराए

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

पहुँचा मैं कू-ए-यार में जब सर लिए हुए

शमीम तारिक़

शम्अ' पर शम्अ' जलाती हुई साथ आती है

शमीम करहानी

जो मिल गई हैं निगाहें कभी निगाहों से

शमीम करहानी

जो देखते हुए नक़्श-ए-क़दम गए होंगे

शमीम करहानी

ग़म दो आलम का जो मिलता है तो ग़म होता है

शमीम करहानी

ये दौर-ए-अहल-ए-हवस है करम से काम न ले

शमीम जयपुरी

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