दुनिया Poetry (page 48)

वो शाम ढले तेरा मिलना वो तेरा हँसाना याद नहीं

इमरान साग़र

परेशाँ हूँ तिरा चेहरा भुलाया भी नहीं जाता

इमरान साग़र

लोगों के सभी फ़लसफ़े झुटला तो गए हम

इमरान हुसैन आज़ाद

ख़ुदा तू इतनी भी महरूमियाँ न तारी रख

इमरान हुसैन आज़ाद

परिंदा आइने से क्या लड़ेगा

इमरान आमी

कुछ एहतिमाम न था शाम-ए-ग़म मनाने को

इमरान आमी

साथ दुनिया का नहीं तालिब-ए-दुनिया देते

इम्दाद इमाम असर

सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो

इम्दाद इमाम असर

हुस्न की जिंस ख़रीदार लिए फिरती है

इम्दाद इमाम असर

मुसालहत का पढ़ा है जब से निसाब मैं ने

इम्दाद हमदानी

किसी के वास्ते क्या क्या हमें दुख झेलने होंगे

इम्दाद हमदानी

जो नर्म लहजे में बात करना सिखा गया है

इम्दाद हमदानी

वक़्त-ए-आख़िर हमें दीदार दिखाया न गया

इमदाद अली बहर

क़द्र-दाँ कोई न असफ़ल है न आ'ला अपना

इमदाद अली बहर

नफ़्स-ए-सरकश को क़त्ल कर ऐ दिल

इमदाद अली बहर

मेरे आगे तज़्किरा माशूक़-ओ-आशिक़ का बुरा

इमदाद अली बहर

मैं सियह-रू अपने ख़ालिक़ से जो ने'मत माँगता

इमदाद अली बहर

मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का

इमदाद अली बहर

ख़ूब-रूयान-ए-जहाँ चाँद की तनवीरें हैं

इमदाद अली बहर

जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए

इमदाद अली बहर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

हम आज-कल हैं नामा-नवीसी की ताव पर

इमदाद अली बहर

अब मरना है अपने ख़ुशी है जीने से बे-ज़ारी है

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसे भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

ने आदमी पसंद न इस को ख़ुदा पसंद

इम्दाद आकाश

रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

हैं अश्क मिरी आँखों में क़ुल्ज़ुम से ज़्यादा

इमाम बख़्श नासिख़

चैन दुनिया में ज़मीं से ता-फ़लक दम भर नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

संकट के दिन थे तो साए भी मुझ से कतराते थे

इमाम अाज़म

सूरज की मीज़ान लिए हम, वो थे बर्फ़ की बाट लिए

इमाम अाज़म

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