संकट के दिन थे तो साए भी मुझ से कतराते थे
सुख के दिन आए तो देखो दुनिया मेरे साथ हुई
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गेसू ओ रुख़्सार की बातें करें
हर तरफ़ इक जंग का माहौल है 'आज़म' यहाँ
जो मज़े आज तिरे ग़म के अज़ाबों में मिले
गर्द-ओ-ग़ुबार धूप के आँचल पे छा गए
सूरज की मीज़ान लिए हम, वो थे बर्फ़ की बाट लिए
उन के रुख़्सत का वो लम्हा मुझे यूँ लगता है
जाने वाले इतना बता दो फिर तुम कब तक आओगे
शहर में ओले पड़े हैं सर सलामत है कहाँ
तेरी ख़ुशबू से मोअत्तर है ज़माना सारा
दुनिया की इक रीत पुरानी, मिलना और बिछड़ना है