गेसू ओ रुख़्सार की बातें करें
आओ मिल कर प्यार की बातें करें
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किसी की बात कोई बद-गुमाँ न समझेगा
उन के रुख़्सत का वो लम्हा मुझे यूँ लगता है
क़द बढ़ाने के लिए बौनों की बस्ती में चलो
जो मज़े आज तिरे ग़म के अज़ाबों में मिले
आस्था का रंग आ जाए अगर माहौल में
शहर में ओले पड़े हैं सर सलामत है कहाँ
दुनिया की इक रीत पुरानी, मिलना और बिछड़ना है
मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई
राखी बंधन