दुनिया Poetry (page 54)

तुम अपने ख़्वाब बचा कर रक्खो कि कल दुनिया

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

फ़रेब दे न कहीं अज़्म-ए-मुस्तक़िल मेरा

हामिद इलाहाबादी

इक रोज़ जो गुलशन में वो जान-ए-बहार आए

हामिद इलाहाबादी

सुब्ह चले तो ज़ौक़-ए-तलब था अर्श-निशाँ ख़ुर्शीद-शिकार

हमीद नसीम

मोहब्बत जादा है मंज़िल नहीं है

हमीद नसीम

फिर गई इक और ही दुनिया नज़र के सामने

हमीद जालंधरी

आ के वो मुझ ख़स्ता-जाँ पर यूँ करम फ़रमा गया

हमीद जालंधरी

मिरी आँखों से हट कर कुछ नहीं है

हमीद गौहर

कर्ब वहशत उलझनें और इतनी तन्हाई कि बस

हमदुन उसमानी

इक मुजस्सम दर्द हूँ इक आह हूँ

हमदुन उसमानी

मरीज़-ए-इश्क़ की जुज़-मर्ग दुनिया में दवा क्यूँ हो

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है

हकीम नासिर

सारे चेहरे ताँबे के हैं लेकिन सब पर क़लई है

हकीम मंज़ूर

मिरे वजूद की दुनिया में है असर किस का

हकीम मंज़ूर

ख़ुद अपने-आप से मिलने का मैं अपना इरादा हूँ

हकीम मंज़ूर

मक़्सद-ए-हयात

हाजी लक़ लक़

बहिश्त-ए-बरीँ

हाजी लक़ लक़

आमदनी और ख़र्च

हाजी लक़ लक़

है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से

हैरत गोंडवी

फ़स्ल-ए-ग़म की जब नौ-ख़ेज़ी हो जाती है

हैदर क़ुरैशी

होता फ़नकार-ए-जदीद और न शाएर होता

हैदर अली जाफ़री

तलब दुनिया को कर के ज़न-मुरीदी हो नहीं सकती

हैदर अली आतिश

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

हैदर अली आतिश

तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया

हैदर अली आतिश

ताज़ा हो दिमाग़ अपना तमन्ना है तो ये है

हैदर अली आतिश

शोहरा-ए-आफ़ाक़ मुझ सा कौन सा दीवाना है

हैदर अली आतिश

सर शम्अ साँ कटाइए पर दम न मारिए

हैदर अली आतिश

क़ुदरत-ए-हक़ है सबाहत से तमाशा है वो रुख़

हैदर अली आतिश

पिसे दिल उस की चितवन पर हज़ारों

हैदर अली आतिश

मुंतज़िर था वो तो जुस्त-ओ-जू में ये आवारा था

हैदर अली आतिश

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