दुनिया Poetry (page 56)

'इक़बाल' के मज़ार पर

हफ़ीज़ जालंधरी

अब ख़ूब हँसेगा दीवाना

हफ़ीज़ जालंधरी

वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे

हफ़ीज़ जालंधरी

मौत के चेहरे पे है क्यूँ मुर्दनी छाई हुई

हफ़ीज़ जालंधरी

ख़ून बन कर मुनासिब नहीं दिल बहे

हफ़ीज़ जालंधरी

हुस्न ने सीखीं ग़रीब-आज़ारियाँ

हफ़ीज़ जालंधरी

दूर से आँखें दिखाती है नई दुनिया मुझे

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल से तिरा ख़याल न जाए तो क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल को वीराना कहोगे मुझे मालूम न था

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे

हफ़ीज़ जालंधरी

ऐसी भी क्या जल्दी प्यारे जाने मिलें फिर या न मिलें हम

हफ़ीज़ होशियारपुरी

लहू की मय बनाई दिल का पैमाना बना डाला

हफ़ीज़ बनारसी

इश्क़ में हर नफ़स इबादत है

हफ़ीज़ बनारसी

तुम्हें भी मालूम हो हक़ीक़त कुछ अपनी रंगीं-अदाइयों की

हादी मछलीशहरी

न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल

हबीब जालिब

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना

हबीब जालिब

'नूर-जहाँ'

हबीब जालिब

मीरा-जी

हबीब जालिब

ये सोच कर न माइल-ए-फ़रियाद हम हुए

हबीब जालिब

फिर कभी लौट कर न आएँगे

हबीब जालिब

क्या क्या लोग गुज़र जाते हैं रंग-बिरंगी कारों में

हबीब जालिब

जीवन मुझ से मैं जीवन से शरमाता हूँ

हबीब जालिब

झूटी ख़बरें घड़ने वाले झूटे शे'र सुनाने वाले

हबीब जालिब

हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम

हबीब जालिब

दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा

हबीब जालिब

दयार-ए-'दाग़'-ओ-'बेख़ुद' शहर-ए-देहली छोड़ कर तुझ को

हबीब जालिब

भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे

हबीब जालिब

अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं

हबीब जालिब

चल नहीं सकते वहाँ ज़ेहन-ए-रसा के जोड़-तोड़

हबीब मूसवी

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