दुनिया Poetry (page 58)

कितनी ढल गई उम्र तुम्हारी हैरत है

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ज़ेहन में दाएरे से बनाता रहा दूर ही दूर से मुस्कुराता रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ख़्वाब कहाँ से टूटा है ताबीर से पूछते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम

ग़ुलाम मौला क़लक़

रास आई है न आएगी ये दुनिया लेकिन

ग़ुलाम हुसैन साजिद

जी में आता है कि दुनिया को बदलना चाहिए

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सुब्ह तक जिन से बहुत बेज़ार हो जाता हूँ मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

लरज़ जाता है थोड़ी देर को तार-ए-नफ़स मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

लहू की आग अगर जलती रहेगी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कोई जब छीन लेता है मता-ए-सब्र मिट्टी से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

जहाँ भर में मिरे दिल सा कोई घर हो नहीं सकता

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुआ रौशन दम-ए-ख़ुर्शीद से फिर रंग पानी का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इक शम्अ' की सूरत में मंज़ूर किया जाऊँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दस्त-ए-राहत ने कभी रँज-ए-गिराँ-बारी ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़-ए-ख़ाना-ए-दिल को सुपुर्द-ए-बाद कर दूँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

फ़सील-ए-जिस्म की ऊँचाई से उतर जाएँ

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

सुख़न का लहजा गुमान-ख़ाने में रह गया है

ग़ज़नफ़र हाशमी

बच के दुनिया से घर चले आए

ग़ज़नफ़र

ये तमन्ना नहीं कि मर जाएँ

ग़ज़नफ़र

तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे

ग़ज़नफ़र

ज़मीं के साथ फ़लक के सफ़र में हम भी हैं

ग़यास मतीन

आँख की पुतली में सूरज सर में कुछ सौदा उगा

ग़यास मतीन

तुझे मैं भूल जाना चाहता हूँ

ग़यास अंजुम

पहुँच कर शब की सरहद पर उजाला डूब जाता है

ग़यास अंजुम

ख़सारे में रहे लेकिन न छोड़ी सादगी हम ने

ग़यास अंजुम

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