बच के दुनिया से घर चले आए
घर से बचने मगर किधर जाएँ
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न जाने किस तरह बिस्तर में घुस कर बैठ जाती हैं
नए आदमी का कंफ़ेशन
तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे
यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है
महा-भारत
रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
हर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ
सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया
अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है
ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ
कल तक जो शफ़्फ़ाफ़ थे चेहरे आवाज़ों से ख़ाली थे
अजीब बात हमारा ही ख़ूँ हुआ पानी