कल तक जो शफ़्फ़ाफ़ थे चेहरे आवाज़ों से ख़ाली थे
आड़ी-तिरछी सुर्ख़ लकीरें उन पर भी अब देखोगे
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रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
अपनी नज़र में भी तो वो अपना नहीं रहा
यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है
अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है
ज़वाल
तेज़ होती जा रही है किस लिए धड़कन मिरी
किसी के नर्म तख़ातुब पे यूँ लगा मुझ को
हम कि साहिल के तसव्वुर से सहम जाते हैं
सजा के ज़ेहन में कितने ही ख़्वाब सोए थे
बच के दुनिया से घर चले आए
ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ
न जाने किस तरह बिस्तर में घुस कर बैठ जाती हैं