मैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
ज़रूर लम्स कोई उस का छू गया मुझ को
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(903) Peoples Rate This
अपनी नज़र में भी तो वो अपना नहीं रहा
अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है
दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह रास्ते में पाँव
मैं उस के झूट को भी सच समझ के सुनता हूँ
रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
नए आदमी का कंफ़ेशन
तेज़ होती जा रही है किस लिए धड़कन मिरी
ज़ेहन के ख़ानों में जाने वक़्त ने क्या भर दिया
हमारे हाथ से वो भी निकल गया आख़िर
न जाने किस तरह बिस्तर में घुस कर बैठ जाती हैं
कई ऐसे भी रस्ते में हमारे मोड़ आते हैं