हमारे हाथ से वो भी निकल गया आख़िर
कि जिस ख़याल में हम मुद्दतों से खोए थे
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मैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
ये तमन्ना नहीं कि मर जाएँ
यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है
नए आदमी का कंफ़ेशन
महा-भारत
तुम्हारे होते हुए लोग क्यूँ भटकते हैं
न जाने किस तरह बिस्तर में घुस कर बैठ जाती हैं
हर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ
कल तक जो शफ़्फ़ाफ़ थे चेहरे आवाज़ों से ख़ाली थे
ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ
अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है
सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया