हर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ
हर एक सुब्ह कोई मुझ को खींच लाता है
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तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे
ये तमन्ना नहीं कि मर जाएँ
रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ
मैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
सजा के ज़ेहन में कितने ही ख़्वाब सोए थे
ज़ेहन के ख़ानों में जाने वक़्त ने क्या भर दिया
बच के दुनिया से घर चले आए
हिजरत
कल तक जो शफ़्फ़ाफ़ थे चेहरे आवाज़ों से ख़ाली थे
अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है
अजीब बात हमारा ही ख़ूँ हुआ पानी