ज़ेहन के ख़ानों में जाने वक़्त ने क्या भर दिया
बे-सबब होने लगी इक एक से अन-बन मिरी
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Anwar Masood
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(754) Peoples Rate This
न जाने किस तरह बिस्तर में घुस कर बैठ जाती हैं
महा-भारत
किसी के नर्म तख़ातुब पे यूँ लगा मुझ को
बच के दुनिया से घर चले आए
मैं उस के झूट को भी सच समझ के सुनता हूँ
अजीब बात हमारा ही ख़ूँ हुआ पानी
सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया
तुम्हारे होते हुए लोग क्यूँ भटकते हैं
अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है
मैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह रास्ते में पाँव