हवा Poetry (page 13)

टटोलता हुआ कुछ जिस्म ओ जान तक पहुँचा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

जल्वे हवा के दोश ये कोई घटा के देख

अज़हर लखनवी

इस कार-ए-आगही को जुनूँ कह रहे हैं लोग

अज़हर इनायती

ये क्या कि रंग हाथों से अपने छुड़ाएँ हम

अज़हर इनायती

क़यामत आएगी माना ये हादिसा होगा

अज़हर इनायती

मयस्सर हो जो लम्हा देखने को

अज़हर इनायती

इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा

अज़हर इनायती

इस बार उन से मिल के जुदा हम जो हो गए

अज़हर इनायती

तेरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है

अज़ीम मुर्तज़ा

तिरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है

अज़ीम मुर्तज़ा

अब तो आए नज़र में जो भी हो

अय्यूब ख़ावर

आ जाए न रात कश्तियों में

अय्यूब ख़ावर

घुटी घुटी सी फ़ज़ा में शगुफ़्तगी तो मिली

औलाद अली रिज़वी

मैं ख़ुद से दूर था और मुझ से दूर था वो भी

अतीक़ुल्लाह

ख़्वाबों की किर्चियाँ मिरी मुट्ठी में भर न जाए

अतीक़ुल्लाह

धुएँ में डूबे हैं फूल तारे चराग़ जुगनू चिनार कैसे

अतहर सलीमी

फूलों से बहारों में जुदा थे तो हमीं थे

अतहर राज़

रौनक़-ए-बेश-ओ-कम किस के होने से है

अतहर नफ़ीस

किस दर्जा मिरे शहर की दिलकश है फ़ज़ा भी

अतहर नादिर

क़रीब से न गुज़र इंतिज़ार बाक़ी रख

अतीक़ असर

मिरी ज़िंदगी किसी मोड़ पर कभी आँसुओं से वफ़ा न दे

अतीक़ अंज़र

कहानियाँ ख़मोश हैं पहेलियाँ उदास हैं

अतीक़ अंज़र

रात और रेल

असरार-उल-हक़ मजाज़

इंक़लाब

असरार-उल-हक़ मजाज़

बर्बत-ए-शिकस्ता

असरार-उल-हक़ मजाज़

आहंग-ए-नौ

असरार-उल-हक़ मजाज़

आओ चलें उस खंडर में

असरा रिज़वी

बालीदगी-ए-ज़र्फ़ पे दिखलाए गए लोग

असरा रिज़वी

सोच की उलझी हुई झाड़ी की जानिब जो गई

असलम कोलसरी

गिरती है तो गिर जाए ये दीवार-ए-सुकूँ भी

अशफ़ाक़ हुसैन

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