सड़क Poetry (page 14)

अब लब पे वो हंगामा-ए-फ़रियाद नहीं है

फ़ानी बदायुनी

न दहर में न हरम में जबीं झुकी होगी

फ़ना बुलंदशहरी

ग़ज़लें लिख लिख पागल होने वाला हूँ

फख़्र अब्बास

क्या करें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दिल-ए-मन मुसाफ़िर-ए-मन

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जहाँ में ख़ुद को बनाने में देर लगती है

फ़ैय्याज़ रश्क़

रख़्त-ए-सफ़र है इस में क़रीना भी चाहिए

फ़ैसल अजमी

इस गली के मोड़ पर

फ़हमीदा रियाज़

दिल्ली तिरी छाँव…

फ़हमीदा रियाज़

चादर और चार-दीवारी

फ़हमीदा रियाज़

वफ़ा-दारी ग़नीमत हो गई क्या

फ़हमी बदायूनी

तेरी गली के मोड़ पे पहुँचे थे जल्द हम

फ़हीम शनास काज़मी

सब खेल-तमाशा ख़त्म हुआ

फ़हीम शनास काज़मी

राहदारी में गूँजती नज़्म

फ़हीम शनास काज़मी

अली-बाबा कोई सिम-सिम

फ़हीम शनास काज़मी

रस्ते में शाम हो गई क़िस्सा तमाम हो चुका

फ़हीम शनास काज़मी

बर्ग-ए-सदा को लब से उड़े देर हो गई

फ़हीम शनास काज़मी

गुल तिरे मुख की फ़िक्र में बीमार

फ़ाएज़ देहलवी

चलो कुछ तो राह तय हो न चले तो भूल होगी

एज़ाज़ अफ़ज़ल

अब कर्ब के तूफ़ाँ से गुज़रना ही पड़ेगा

एजाज़ रहमानी

महमिल है मतलूब न लैला माँगता है

एजाज़ गुल

ज़िंदगी इक आग है वो आग जलना चाहिए

एहसान जाफ़री

तुम इस तरफ़ से गुज़र चुकी हो मगर गली गुनगुना रही है

एहसान दरबंगावी

आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी

एहसान दानिश

आइने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे

दिनेश ठाकुर

चाक पर मिट्टी को मर जाना है

दिनेश नायडू

जाँ देने को पहुँचे थे सभी तेरी गली में

दिलावर फ़िगार

वो शख़्स कभी जिस ने मिरा घर नहीं देखा

दिलावर फ़िगार

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