रोटेशन Poetry (page 4)

ऐ जुनूँ कुछ तो खुले आख़िर मैं किस मंज़िल में हूँ

सुरूर बाराबंकवी

मैं दिन को रात के दरिया में जब उतार आया

सूरज नारायण

वफ़ा का इम्तिहाँ है जान-आे-तन की आज़माइश है

सुलैमान आसिफ़

इन दिनों तेज़ बहुत तेज़ है धारा मेरा

सुहैल अख़्तर

सायों से लिपट रहे थे साए

सूफ़ी तबस्सुम

हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं

सूफ़ी तबस्सुम

तिरी ज़ुल्फ़ के पेच-ओ-ख़म देखते हैं

सुदर्शन कुमार वुग्गल

यारब सराब-ए-अहल-ए-हवस से नजात दे

सिराजुद्दीन ज़फ़र

क्यूँ ध्यान बटाती है मिरा गर्दिश-ए-दुनिया

सिराज लखनवी

ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ

सिराज लखनवी

ईमाँ की नुमाइश है सज्दे हैं कि अफ़्साने

सिराज लखनवी

दुनिया का न उक़्बा का कोई ग़म नहीं सहते

सिराज लखनवी

बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है

सिरज़ अालम ज़ख़मी

ले उड़े ख़ाक भी सहरा के परस्तार मिरी

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

ऐसा कुछ गर्दिश-ए-दौराँ ने रखा है मसरूफ़

सिद्दीक़ शाहिद

आग को फूल कहे जाएँ ख़िर्द-मंद अपने

सिद्दीक़ शाहिद

गिल भीक में लेते हैं जिस फूल से रानाई

शुजा

मालूम नहीं क्यूँ

शोरिश काश्मीरी

हिज्र ओ विसाल

शोरिश काश्मीरी

अब जी रहा हूँ गर्दिश-ए-दौराँ के साथ साथ

शोरिश काश्मीरी

वो और होंगे जो वहम-ओ-गुमाँ के साथ चले

शोला हस्पानवी

दरों को चुनता हूँ दीवार से निकलता हूँ

शोएब निज़ाम

एक ज़र्रा भी न मिल पाएगा मेरा मुझ को

शोएब बिन अज़ीज़

इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

वो जब तक अंजुमन में जल्वा फ़रमाने नहीं आते

शेर सिंह नाज़ देहलवी

सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है

ज़ौक़

शरार-ए-जाँ से गुज़र गर्दिश-ए-लहू में आ

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

जाने क्या क़ीमत-ए-अरबाब-ए-वफ़ा ठहरेगी

शाज़ तमकनत

आ कर नजात बख़्श दो रंज-ओ-मलाल से

शौक़ सालकी

ज़ुल्फ़-ए-दराज़ से ये नुमायाँ है ग़ालिबन

शौक़ बहराइची

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