शोक Poetry (page 77)

यही तो ग़म है वो शाइ'र न वो सियाना था

हसन नईम

याद का फूल सर-ए-शाम खिला तो होगा

हसन नईम

वो भी कहता था कि उस ग़म का मुदावा ही नहीं

हसन नईम

वहशत-ए-जाँ को पयाम-ए-निगह-ए-नाज़ तो दो

हसन नईम

क़सीदा तुझ से ग़ज़ल तुझ से मर्सिया तुझ से

हसन नईम

कोह के सीने से आब-ए-आतशीं लाता कोई

हसन नईम

ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या

हसन नईम

ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है

हसन नईम

जो ग़म के शो'लों से बुझ गए थे हम उन के दाग़ों का हार लाए

हसन नईम

जंगलों की ये मुहिम है रख़्त-ए-जाँ कोई नहीं

हसन नईम

जादू-ए-ख़्वाब में कुछ ऐसे गिरफ़्तार हुए

हसन नईम

जब्र-ए-शही का सिर्फ़ बग़ावत इलाज है

हसन नईम

इश्क़ के बाब में किरदार हूँ दीवाने का

हसन नईम

हुस्न के सेहर ओ करामात से जी डरता है

हसन नईम

ग़म से बिखरा न पाएमाल हुआ

हसन नईम

दिलों में आग लगाओ नवा-कशी ही करो

हसन नईम

चेहरे पे मोहर-ए-ग़म है ख़त-ओ-ख़ाल की तरह

हसन नईम

चेहरे पे मोहर-ए-ग़म है ख़त-ओ-ख़ाल की तरह

हसन नईम

बयान-ए-शौक़ बना हर्फ़-ए-इज़्तिराब बना

हसन नईम

बसर हो यूँ कि हर इक दर्द हादिसा न लगे

हसन नईम

बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

झुलसे बदन न सुलगें आँखें ऐसे हैं दिन-रात मिरे

हसन कमाल

इनायत कम मोहब्बत कम वफ़ा कम

हसन कमाल

तिलिस्म-ए-आतिश-ए-ग़म आज़माने वाला हो

हसन जमील

वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब

हसन बरेलवी

फ़िक्र-ए-मंज़िल है न नाम-ए-रहनुमा लेते हैं हम

हसन अज़ीमाबादी

मैं न दरिया हूँ न साहिल न सफ़ीना न भँवर

हसन अख्तर जलील

ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे

हसन अख्तर जलील

ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे

हसन अख्तर जलील

सीने में चराग़ जल रहा है

हसन अख्तर जलील

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