शोक Poetry (page 75)

उस ज़ुल्फ़ के सौदे का ख़लल जाए तो अच्छा

हातिम अली मेहर

मेरे ही दिल के सताने को ग़म आया सीधा

हातिम अली मेहर

करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस

हातिम अली मेहर

इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी

हस्तीमल हस्ती

सर-ए-दरबार ख़ामोशी तह-ए-दरबार ख़ुशियाँ हैं

हस्सान अहमद आवान

शिकवा-ए-ग़म तिरे हुज़ूर किया

हसरत मोहानी

वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते

हसरत मोहानी

उस बुत के पुजारी हैं मुसलमान हज़ारों

हसरत मोहानी

तुझ से गरवीदा यक ज़माना रहा

हसरत मोहानी

तिरे दर्द से जिस को निस्बत नहीं है

हसरत मोहानी

तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी

हसरत मोहानी

सियहकार थे बा-सफ़ा हो गए हम

हसरत मोहानी

सितम हो जाए तम्हीद-ए-करम ऐसा भी होता है

हसरत मोहानी

रविश-ए-हुस्न-ए-मुराआत चली जाती है

हसरत मोहानी

क़वी दिल शादमाँ दिल पारसा दिल

हसरत मोहानी

नज़्ज़ारा-ए-पैहम का सिला मेरे लिए है

हसरत मोहानी

न सूरत कहीं शादमानी की देखी

हसरत मोहानी

न सही गर उन्हें ख़याल नहीं

हसरत मोहानी

मुक़र्रर कुछ न कुछ इस में रक़ीबों की भी साज़िश है

हसरत मोहानी

क्या काम उन्हें पुर्सिश-ए-अरबाब-ए-वफ़ा से

हसरत मोहानी

ख़ू समझ में नहीं आती तिरे दीवानों की

हसरत मोहानी

कैसे छुपाऊँ राज़-ए-ग़म दीदा-ए-तर को क्या करूँ

हसरत मोहानी

हमें वक़्फ़-ए-ग़म सर-ब-सर देख लेते

हसरत मोहानी

हाइल थी बीच में जो रज़ाई तमाम शब

हसरत मोहानी

है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी

हसरत मोहानी

दुआ में ज़िक्र क्यूँ हो मुद्दआ का

हसरत मोहानी

दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया

हसरत मोहानी

दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई

हसरत मोहानी

बुत-ए-बे-दर्द का ग़म मोनिस-ए-हिज्राँ निकला

हसरत मोहानी

बेकली से मुझे राहत होगी

हसरत मोहानी

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