शोक Poetry (page 74)

अन-कही

हिमायत अली शाएर

ये शहर-ए-रफ़ीक़ाँ है दिल-ए-ज़ार सँभल के

हिमायत अली शाएर

नाला-ए-ग़म शो'ला-असर चाहिए

हिमायत अली शाएर

क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए

हिमायत अली शाएर

इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और

हिमायत अली शाएर

अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो

हिमायत अली शाएर

आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना

हिमायत अली शाएर

आए थे तेरे शहर में कितनी लगन से हम

हिमायत अली शाएर

शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

है जब तक दश्त-पैमाई सलामत

हिजाब अब्बासी

क्या बात है नज़रों से अंधेरा नहीं जाता

हीरा लाल फ़लक देहलवी

ऐ शाम-ए-ग़म की गहरी ख़मोशी तुझे सलाम

हीरा लाल फ़लक देहलवी

तारों से माहताब से और कहकशाँ से क्या

हीरा लाल फ़लक देहलवी

निय्यत अगर ख़राब हुई है हुज़ूर की

हीरा लाल फ़लक देहलवी

मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना

हीरा लाल फ़लक देहलवी

क्या कहें क्यूँकर हुआ तूफ़ान में पैदा क़फ़स

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कू-ए-जानाँ में नहीं कोई गुज़र की सूरत

हीरा लाल फ़लक देहलवी

अश्क-ए-ग़म वो है जो दुनिया को दिखा भी न सकूँ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

उम्र भर बहते हैं ग़म के तुंद-रौ धारों के साथ

हज़ीं लुधियानवी

फिर फ़ज़ा धुँदला गई आसार हैं तूफ़ान के

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

ये जो हर शय में तिरी जल्वागरी है ऐ दोस्त

हज़ार लखनवी

महदूद-निगाही के सनम टूट रहे हैं

हयात वारसी

फ़सील-ए-शुक्र में हैं सब्र के हिसार में हैं

हयात वारसी

कई सितारे यहाँ टूटते बिखरते हैं

हयात लखनवी

रहें ग़म की शरर-अंगेज़ियाँ या-रब क़यामत तक

हया लखनवी

निगाह-ए-शौक़ अगर दिल की तर्जुमाँ हो जाए

हया लखनवी

न होती हाल-ए-दिल कहने की गर हिम्मत तो अच्छा था

हया लखनवी

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