शोक Poetry (page 72)

सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की

इमाम बख़्श नासिख़

सनम कूचा तिरा है और मैं हूँ

इमाम बख़्श नासिख़

जो मज़े आज तिरे ग़म के अज़ाबों में मिले

इमाम अाज़म

मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई

इमाम अाज़म

जो मज़े आज तिरे ग़म के अज़ाबों में मिले

इमाम अाज़म

मौत सी ख़मोशी जब उन लबों पे तारी की

इकराम मुजीब

नशात-ए-नौ की तलब है न ताज़ा ग़म का जिगर

इकराम आज़म

सज़ा ही दी है दुआओं में भी असर दे कर

इफ़्तिख़ार नसीम

ख़ुद को हुजूम-ए-दहर में खोना पड़ा मुझे

इफ़्तिख़ार नसीम

है जुस्तुजू अगर इस को इधर भी आएगा

इफ़्तिख़ार नसीम

नश्तर-ए-ग़म न जिस को रास आया

इफ़्तिख़ार जमील शाहीन

ये तिरा बाँकपन ये रानाई

इफ़्तिख़ार जमील शाहीन

शहर-आशोब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

पस च-बायद-कर्द

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक ख़्वाब की दूरी पर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हम अहल-ए-जब्र के नाम-ओ-नसब से वाक़िफ़ हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शौक़

इफ़्तिख़ार आज़मी

दर्द अब दिल की दवा हो जैसे

इफ़्तिख़ार आज़मी

रहमतों में तिरी आग़ोश की पाले गए हम

इफ़्फ़त अब्बास

ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ

इदरीस बाबर

सुकूँ-परवर है जज़्बाती नहीं है

इबरत बहराईची

मिरे ही दिल को अपना घर समझना

इबरत बहराईची

न दिल में कोई ग़म रहे न मेरी आँख नम रहे

इब्राहीम अश्क

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

दिल पीत की आग में जलता है

इब्न-ए-इंशा

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

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