शोक Poetry (page 1)

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

विसाल

बलराज कोमल

तिरी शबीह को लिक्खा है रंग-ओ-बू मैं ने

एहतिमाम सादिक़

जो महका रहे तेरी याद सुहानी में

बीना गोइंदी

चले ही जाएगी क्या दर्द की कटारी भला

अनवर अंजुम

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

14-अगस्त

हबीब जालिब

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

तुम्हारे लब पे नाम आया हमारा

अमित सतपाल तनवर

गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी

ये सन्नाटा है मैं हूँ चाँदनी में

अमित सतपाल तनवर

बला-ए-तीरा-शबी का जवाब ले आए

अख़्तर सईद ख़ान

कोई रुत्बा तो कोई नाम-नसब पूछता है

सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से

अहमद फ़ाख़िर

कोई शिकवा तो ज़ेर-ए-लब होगा

ए जी जोश

क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए

एहतिशाम हुसैन

नहीं ख़स्ता-हाली पे ना-मुतमइन हम

अनवर शऊर

राहत-ए-नज़र भी है वो अज़ाब-ए-जाँ भी है

महमूद शाम

यहाँ-वहाँ से इधर-उधर से न जाने कैसे कहाँ से निकले

आफ़्ताब शकील

जो सकूँ न रास आया तो मैं ग़म में ढल रहा हूँ

अख़्तर आज़ाद

हम को ख़ुलूस-ए-दिल का किसी ने सिला दिया है

अनवर ख़लील

रोने वालों ने तिरे ग़म को सराहा ही नहीं

बिमल कृष्ण अश्क

ग़ुरूब होते हुए सूरजों के पास रहे

वफ़ा नक़वी

अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है

हबीब जालिब

गुल-बदन गुल-एज़ार आ जाओ

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ

अर्श सिद्दीक़ी

ढोल वाला

बुशरा सईद

बीते हुए कल का इंतिज़ार

एहतिशाम अख्तर

ख़रगोश का ग़म

बलराज कोमल

सुकूत-ए-शब

अज़हर क़ादिरी

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