शोक Poetry (page 152)

ख़राब-ए-दर्द हुए ग़म-परस्तियों में रहे

अब्दुल अहद साज़

हम अपने ज़ख़्म कुरेदते हैं वो ज़ख़्म पराए धोते थे

अब्दुल अहद साज़

हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई

अब्दुल अहद साज़

इल्तिजाएँ कर के माँगी थी मोहब्बत की कसक

अब्बास ताबिश

यूँ तो शीराज़ा-ए-जाँ कर के बहम उठते हैं

अब्बास ताबिश

ये हम को कौन सी दुनिया की धुन आवारा रखती है

अब्बास ताबिश

तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं

अब्बास ताबिश

मिरे बदन में लहू का कटाव ऐसा था

अब्बास ताबिश

कुंज-ए-ग़ज़ल न क़ैस का वीराना चाहिए

अब्बास ताबिश

चाँद को तालाब मुझ को ख़्वाब वापस कर दिया

अब्बास ताबिश

जिस को हम समझते थे उम्र भर का रिश्ता है

अब्बास रिज़वी

वही दर्द है वही बेबसी तिरे गाँव में मिरे शहर में

अब्बास दाना

बे-वज्ह नहीं उन का बे-ख़ुद को बुलाना है

अब्बास अली ख़ान बेखुद

वो जाते जाते मुझे अपने ग़म भी सौंप गया

आज़िम कोहली

मैं जी भर के रोया तो आराम आया

आज़िम कोहली

दूर है मंज़िल तो क्या रस्ता तो है

आज़िम कोहली

बहुत अज़ीज़ था आलम वो दिल-फ़िगारी का

आज़िम कोहली

उल्फ़तों का ख़ुदा नहीं हूँ मैं

अातिश इंदौरी

लाख पर्दों में गो निहाँ हम थे

अातिश बहावलपुरी

आप की हस्ती में ही मस्तूर हो जाता हूँ मैं

अातिश बहावलपुरी

मानूस हो गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम

आसी रामनगरी

क्या मसर्रत है पूछिए हम से

आसी रामनगरी

ग़म को सबात है न ख़ुशी को क़रार है

आसी रामनगरी

धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो

आसी रामनगरी

बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है

आसी ग़ाज़ीपुरी

क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे

आसी ग़ाज़ीपुरी

लहू लहू आरज़ू बदन का लिहाफ़ होगा

आनन्द सरूप अंजुम

क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है

आले रज़ा रज़ा

क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है

आले रज़ा रज़ा

सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर

आल-ए-अहमद सूरूर

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