शोक Poetry (page 73)

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले

इब्न-ए-इंशा

ढली जो शाम नज़र से उतर गया सूरज

हुसैन ताज रिज़वी

किरन किरन के दरख़्शंदा बाब मेरे हैं

हुसैन सहर

मर-मिटे जब से हम उस दुश्मन-ए-दीं पर साहब

हुसैन मजरूह

वो दिल समो ले जो दामन में काएनात का कर्ब

हुरमतुल इकराम

वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा

हुरमतुल इकराम

उस के सिवा क्या अपनी दौलत

हुरमतुल इकराम

रह-ए-तलब में बड़ी तुर्फ़गी के साथ चले

हुरमतुल इकराम

दिल को तौफ़ीक़-ए-ज़ियाँ हो तो ग़ज़ल होती है

हुरमतुल इकराम

जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से

हुमैरा रहमान

ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को

हुमैरा राहत

कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई

हुमैरा राहत

तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो

होश तिर्मिज़ी

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

वो तक़ाज़ा-ए-जुनूँ अब के बहारों में न था

होश तिर्मिज़ी

तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो

होश तिर्मिज़ी

मिलता नहीं मिज़ाज ख़ुद अपनी अदा में है

होश तिर्मिज़ी

लाएगा रंग ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ देखते रहो

होश तिर्मिज़ी

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

देखे हैं जो ग़म दिल से भुलाए नहीं जाते

होश तिर्मिज़ी

पहले तो ख़्वाब ज़ेहन में तश्कील हो गया

हीरानंद सोज़

कोई मोनिस नहीं मेरा कोई ग़म-ख़्वार नहीं

हीरानंद सोज़

उन के सब झूट मो'तबर ठहरे

हिना हैदर

सूरज को ये ग़म है कि समुंदर भी है पायाब

हिमायत अली शाएर

सिर्फ़ ज़िंदा रहने को ज़िंदगी नहीं कहते

हिमायत अली शाएर

फिर मिरी आस बढ़ा कर मुझे मायूस न कर

हिमायत अली शाएर

यूसुफ़-ए-सानी

हिमायत अली शाएर

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

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