घड़ी Poetry (page 17)

मैं उस घड़ी अपने आप का सामना भी करने से भागता हूँ

ऐन ताबिश

घनी सियह ज़ुल्फ़ बदलियों सी बिला सबब मुझ में जागती है

ऐन ताबिश

रिश्ता-ए-दिल उसी से मिलता है

अहमद निसार

दर्द ठहरे तो ज़रा दिल से कोई बात करें

अहमद वसी

नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी

अहमद शहरयार

इनइकास-ए-तिश्नगी सहरा भी है दरिया भी है

अहमद शहरयार

दिल पे जब दर्द की उफ़्ताद पड़ी होती है

अहमद राही

यूँ तो पहने हुए पैराहन-ए-ख़ार आता हूँ

अहमद नदीम क़ासमी

मिलने की ये कौन घड़ी थी

अहमद मुश्ताक़

सफ़र नया था न कोई नया मुसाफ़िर था

अहमद मुश्ताक़

दश्त में वादी-ए-शादाब को छू कर आया

अहमद ख़याल

एक तअस्सुर

अहमद जावेद

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

अहमद हुसैन माइल

चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या

अहमद हुसैन माइल

मकाशफ़ा

अहमद हमेश

दो घड़ी उस से रहो दूर तो यूँ लगता है

अहमद फ़राज़

हच-हाईकर

अहमद फ़राज़

ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ

अहमद फ़राज़

ऐ मेरे सारे लोगो

अहमद फ़राज़

यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा

अहमद फ़राज़

तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त

अहमद फ़राज़

न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो

अहमद फ़राज़

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की

अहमद फ़राज़

ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे

अहमद फ़राज़

ख़्वाब का इज़्न था ता'बीर-ए-इजाज़त थी मुझे

अहमद अता

सलफ़ से लोग उन पे मर रहे हैं हमेशा जानें लिया करेंगे

आग़ा हज्जू शरफ़

जो सामना भी कभी यार-ए-ख़ूब-रू से हुआ

आग़ा हज्जू शरफ़

जो मिरी आरज़ू नहीं करता

अफ़ज़ल इलाहाबादी

वक़्त उन का दुश्मन है

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

तुम ख़ूब-सूरत दाएरों में रहती हो

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

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