घड़ी Poetry (page 7)

क्यूँ हर उरूज को यहाँ आख़िर ज़वाल है

सग़ीर मलाल

वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी

साग़र सिद्दीक़ी

ज़रूरत-ए-रिश्ता

साग़र ख़य्यामी

होली

साग़र ख़य्यामी

तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है

साग़र ख़य्यामी

अलग अलग इकाइयाँ

सईदुद्दीन

ग़म रात-दिन रहे तो ख़ुशी भी कभी रही

सईद अख़्तर

सफ़र ला सफ़र

सईद अहमद

यूँ तो हर एक शख़्स ही तालिब समर का है

सादिक़ नसीम

एक पुरानी नज़्म

सादिक़

वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है

साबिर ज़फ़र

सब सितम याद हैं सारी हमदर्दियाँ याद हैं

साबिर ज़फ़र

वो आलम तिश्नगी का है सफ़र आसाँ नहीं लगता

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई

रूही कंजाही

था निगाहों में बसाया जाने किस तस्वीर को

रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान

नया अदम कोई नई हदों का इंतिख़ाब अब

रियाज़ लतीफ़

ऐसी ही इंतिज़ार में लज़्ज़त अगर न हो

रियाज़ ख़ैराबादी

मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं

रियाज़ ख़ैराबादी

हैं ये सारे जीते-जी के वास्ते

रिन्द लखनवी

दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे

रिन्द लखनवी

होते हैं ख़त्म अब ये लम्हात ज़िंदगी के

रिफ़अत सेठी

अश्क यूँ बहते हैं सावन की झड़ी हो जैसे

रज़ा हमदानी

यार को बेबाकी में अपना सा हम ने कर लिया

रज़ा अज़ीमाबादी

उस घड़ी कुछ थे और अब कुछ हो

रज़ा अज़ीमाबादी

सच कह 'रज़ा' ये किस से लगाई है साट-बाट

रज़ा अज़ीमाबादी

कभी यूँ भी करो शहर-ए-गुमाँ तक ले चलो मुझ को

राशिद तराज़

लोग कि जिन को था बहुत ज़ोम-ए-वजूद शहर में

राशिद मुफ़्ती

उफ़ुक़ के उस पार

राशिद आज़र

सिलसिला-ए-ज़िन्दगी

राशिद आज़र

बात सूरज की कोई आज बनी है कि नहीं

रशीद क़ैसरानी

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