घड़ी Poetry (page 8)

अगर गुल की कोई पती झड़ी है

रशीद लखनवी

बड़ी ही धूम से दावत हो फिर तो ज़ाहिद की

रसा रामपुरी

नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो

रसा रामपुरी

आज तो रोने को जी हो जैसे

राजेन्द्र मनचंदा बानी

शाम कठिन है रात कड़ी है

राजेन्द्र नाथ रहबर

बे-वफ़ाओं को वफ़ाओं का ख़ुदा हम ने कहा

राजेन्द्र नाथ रहबर

आगही जिस मक़ाम पर ठहरी

रहमान जामी

तुम अपने हुस्न पे ग़ज़लें पढ़ा करो बैठे

राहील फ़ारूक़

हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है

इरफ़ान सत्तार

ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं

इरफ़ान सत्तार

हर घड़ी का साथ दुख देता है जान-ए-मन मुझे

इक़बाल साजिद

मैं दर पे तिरे दर-ब-दरी से निकल आया

इक़बाल कौसर

घड़ी में अक्स-ए-इंसाँ

इंतिख़ाब अालम

ये नहीं बर्क़ इक फ़रंगी है

इंशा अल्लाह ख़ान

वो परी ही नहीं कुछ हो के कड़ी मुझ से लड़ी

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक इक ऐ नसीम सँभाल ले कि बहार मस्त-ए-शराब है

इंशा अल्लाह ख़ान

सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

मुझे छेड़ने को साक़ी ने दिया जो जाम उल्टा

इंशा अल्लाह ख़ान

कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं

इंशा अल्लाह ख़ान

जी चाहता है शैख़ की पगड़ी उतारिए

इंशा अल्लाह ख़ान

चाहता हूँ तुझे नबी की क़सम

इंशा अल्लाह ख़ान

अश्क मिज़्गान-ए-तर की पूँजी है

इंशा अल्लाह ख़ान

शाख़-ए-अदम

इंजिला हमेश

मोहब्बत

इंजिला हमेश

अन-देखी ज़मीं पर

इंजिला हमेश

ले-बाई एरिया

इंजील सहीफ़ा

ये मौसम सुरमई है और मैं हूँ

इन्दिरा वर्मा

सोचता हूँ सदा मैं ज़मीं पर अगर कुछ कभी बाँटता

इनआम आज़मी

ये जो आबाद होने जा रहे हैं

इमरान-उल-हक़ चौहान

सड़क

इमरान शमशाद

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