बड़ी ही धूम से दावत हो फिर तो ज़ाहिद की
ये मय जो चार घड़ी को हलाल हो जाए
Javed Akhtar
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'रसा' को दिल में रखते हैं 'रसा' के जानने वाले
पी के कर लेता हूँ तौबा जब से ये दस्तूर है
नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो
वो ख़ुश किसी के साथ हैं ना-ख़ुश किसी के साथ
रास आया है मुझे वहशत में मर जाना मिरा
उन की ख़ल्वत में 'रसा' भी होगा
कौन सा इश्क़-ए-बुताँ में हमें सदमा न हुआ
दिल में किसी को रक्खो दिल में रहो किसी के
साक़ी जो दिए जाए ये कह कर कि पिए जा
बअ'द-ए-फ़ना भी ख़ैर से तन्हा नहीं हैं हम