घटा Poetry (page 1)

किस रंग में हैं अहल-ए-वफ़ा उस से न कहना

महमूद शाम

किस को होगा तिरे आने का पता मेरे बा'द

महमूद शाम

इस चश्म-ए-सियह-मस्त पे गेसू हैं परेशाँ

सहरा में घटा का मुंतज़िर हूँ

ज़ुहूर नज़र

था हर्फ़-ए-शौक़ सैद हुआ कौन ले गया

ज़ुबैर रिज़वी

पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है

ज़ुबैर रिज़वी

मिलन मौसमों की सज़ा चाहता हूँ

ज़ुबैर रिज़वी

मैं ने कब बर्क़-ए-तपाँ मौज-ए-बला माँगी थी

ज़ुबैर रिज़वी

लब पर दिल की बात न आई

ज़िया फ़तेहाबादी

हिसाब

ज़ीशान साहिल

नक़्श-ए-तस्वीर न वो संग का पैकर कोई

ज़ेब ग़ौरी

गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत

ज़ेब ग़ौरी

एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होती

ज़ेब ग़ौरी

पुर-हौल जंगलों की सदा मेरे साथ है

ज़मान कंजाही

दर्द इन दिनों यूँ चेहरा-ए-आलम पे सजा है

ज़हीर फ़तेहपूरी

कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

बे-क़नाअत क़ाफ़िले हिर्स-ओ-हवा ओढ़े हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

आगे बढ़ूँ तो ज़र्द घटा मेरे रू-ब-रू

ज़फ़र इक़बाल

मैं भी शरीक-ए-मर्ग हूँ मर मेरे सामने

ज़फ़र इक़बाल

झील में उस का पैकर देखा जैसे शोला पानी में

ज़फ़र हमीदी

कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है

यगाना चंगेज़ी

काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से

यगाना चंगेज़ी

तुम्हारी ज़ुल्फ़ न गिर्दाब-ए-नाफ़ तक पहुँची

वज़ीर अली सबा लखनवी

नहीं है हाजियों को मय-कशी की कैफ़िय्यत

वज़ीर अली सबा लखनवी

मैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकता

वसीम बरेलवी

हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस

वामिक़ जौनपुरी

ना-मुरादी ही लिखी थी सो वो पूरी हो गई

वजद चुगताई

किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आरियों की पहली आमद हिन्दोस्तान में

वहीदुद्दीन सलीम

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

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