घटा Poetry (page 2)

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

दीवानों को मंज़िल का पता याद नहीं है

वहीद अख़्तर

न दरमियाँ न कहीं इब्तिदा में आया है

विशाल खुल्लर

मैं इंसाँ था ख़ुदा होने से पहले

विशाल खुल्लर

ज़िंदाबाद ऐ दश्त के मंज़र ज़िंदाबाद

उनवान चिश्ती

शिद्दत-ए-इज़हार-ए-मज़मूँ से है घबराई हुई

तुफ़ैल बिस्मिल

इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है

त्रिपुरारि

गर मेरे बैठने से वो आज़ार खींचते

मीर तस्कीन देहलवी

ढलती रात

तख़्त सिंह

काली घटा में चाँद ने चेहरा छुपा लिया

ताज सईद

एक ही जाम को पिला साक़ी

ताबाँ अब्दुल हई

बड़ी हैरत से अरबाब-ए-वफ़ा को देखता हूँ मैं

सय्यद ज़मीर जाफ़री

मेरी निगह में यार मैं उस की निगाह में

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

आई नहीं क्या क़ैद है गुलशन में सबा भी

सय्यद हामिद

देख कर काली घटा अहल-ए-क़फ़स

सय्यद बासित हुसैन माहिर लखनवी

क्यूँ मिल रही है उन को सज़ा चीख़ती रही

सय्यद अनवार अहमद

उतर के धूप जब आएगी शब के ज़ीने से

सय्यद अहमद शमीम

चैन पड़ता है दिल को आज न कल

सय्यद आबिद अली आबिद

सूने सूने से फ़लक पर इक घटा बनती हुई

स्वप्निल तिवारी

समाअतों में बहुत दूर की सदा ले कर

स्वप्निल तिवारी

गुलज़ार-ए-वतन

सुरूर जहानाबादी

ख़्वाब देखता हूँ

सुरूर बाराबंकवी

तन्हाई की ख़लीज है यूँ दरमियान में

सुल्तान अख़्तर

हर-चंद अपने अक्स का दिल दर्दमंद हो

सुल्तान अख़्तर

ये जो काली घटा छाई हुई है

सुदर्शन कुमार वुग्गल

वो नग़्मगी का ज़ाइक़ा उस की सदा में था

सोहन राही

दम घुटा जाता है मोहब्बत का

सिराज लखनवी

अश्क-ए-हसरत में क्यूँ लहू है अभी

सिराज लखनवी

सर्व-ए-गुलशन पर सुख़न उस क़द का बाला हो गया

सिराज औरंगाबादी

खेल

शोरिश काश्मीरी

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