गुलाम Poetry (page 4)

यहाँ काँप जाते हैं फ़लसफ़े ये बड़ा अजीब मक़ाम है

अनवर मिर्ज़ापुरी

ऐ दो-जहाँ के मालिक आ'ला है नाम तेरा

अनीसा बेगम

बदन के लुक़्मा-ए-तर को हराम कर लिया है

अमीर हम्ज़ा साक़िब

लाले पड़े हैं जान के जीने का एहतिमाम कर

अमीन हज़ीं

जब वो मुझ से कलाम करता है

अलमास शबी

ला फिर इक बार वही बादा ओ जाम ऐ साक़ी

अल्लामा इक़बाल

गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है जरस उठ कि गया क़ाफ़िला

अल्लामा इक़बाल

कुछ इस तरह वो दुआ-ओ-सलाम कर के गया

अली यासिर

आह ऐ सौदा-ए-ख़ाम-ए-आरज़ू

अकबर हैदरी

इक बंद हो गया है तो खोलेंगे बाब और

अजय सहाब

जुनूँ की रस्म ज़माने में आम हो न सकी

अहमद शाहिद ख़ाँ

नज़्म

अहमद राही

ख़बर नहीं है मिरे बादशाह को शायद

अहमद जावेद

हमेशा दिल हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खा

अहमद जावेद

हमारी हम-नफ़सी को भी क्या दवाम हुआ

अहमद जावेद

उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया

अहमद फ़राज़

जंगल के पास एक औरत

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

गाँठी है उस ने दोस्ती इक पेश-इमाम से

आदिल मंसूरी

नई सुब्ह चाहते हैं नई शाम चाहते हैं

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच था

अबु तुराब

सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान

आबरू शाह मुबारक

क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला

आबरू शाह मुबारक

फिर इस के ब'अद ये बाज़ार-ए-दिल नहीं लगना

अब्बास ताबिश

हवा-ए-तेज़ तिरा एक काम आख़िरी है

अब्बास ताबिश

मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त

आग़ा अकबराबादी

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