गाँठ Poetry (page 4)

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

ग़ालिब

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

सुख़न जो उस ने कहे थे गिरह से बाँध लिए

फ़ाज़िल जमीली

बिसात-ए-दानिश-ओ-हर्फ़-ओ-हुनर कहाँ खोलें

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

आँखों के ख़्वाब दिल की जवानी भी ले गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

नहीं मंज़ूर तप-ए-हिज्र का रुस्वा होना

फ़ानी बदायुनी

आज दिल है कि सर-ए-शाम बुझा लगता है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

चाहा था मफ़र दिल ने मगर ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर

एजाज़ गुल

दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर

एजाज़ गुल

अक़्ल पहुँची जो रिवायात के काशाने तक

एहतिशाम हुसैन

चालीस चोर

दिलावर फ़िगार

बाक़ी जहाँ में क़ैस न फ़रहाद रह गया

दाग़ देहलवी

ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है

बेख़ुद देहलवी

गर्दिश-ए-बख़्त से बढ़ती ही चली जाती हैं

बेखुद बदायुनी

दिल उचकेगी कि बिखरी है अड़ी है

बयान मेरठी

फ़रहाद किस उम्मीद पे लाता है जू-ए-शीर

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

चाय की प्याली में नीली टेबलेट घोली

बशीर बद्र

तुम कब थे क़रीब इतने मैं कब दूर रहा हूँ

बाक़ी सिद्दीक़ी

बुलबुल से कहा गुल ने कर तर्क मुलाक़ातें

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

इश्क़ में बू है किबरियाई की

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

कम न होगी ये सरगिरानी क्या

बकुल देव

ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तिरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई

ज़फ़र

शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़

ज़फ़र

जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो

ज़फ़र

इश्क़ तो मुश्किल है ऐ दिल कौन कहता सहल है

ज़फ़र

है दिल को जो याद आई फ़लक-ए-पीर किसी की

ज़फ़र

तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं

अज़ीज़ लखनवी

शोख़ी से कश्मकश नहीं अच्छी हिजाब की

अज़ीज़ हैदराबादी

लिखी हुई जो तबाही है उस से क्या जाता

अज़ीज़ हामिद मदनी

गुल-ए-ख़ुर्शीद खिलाऊँगा चला जाऊँगा

अशरफ़ जावेद

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