गाँठ Poetry (page 2)

तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हम कि इंसान नहीं आँखें हैं

शहज़ाद अहमद

हवस-ए-ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर लिए बैठे हैं

शहाब जाफ़री

तार-ए-नफ़स उलझ गया मेरे गुलू में आ के जब

शाह नसीर

इक आबला था सो भी गया ख़ार-ए-ग़म से फट

शाह नसीर

क्यूँ न कहें बशर को हम आतिश-ओ-आब ओ ख़ाक-ओ-बाद

शाह नसीर

देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया

शाह नसीर

तुझ इश्क़ के मरीज़ की तदबीर शर्त है

मोहम्मद रफ़ी सौदा

नासेह को जेब सीने से फ़ुर्सत कभू न हो

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बदन चुराते हुए रूह में समाया कर

साक़ी फ़ारुक़ी

उस को मिल कर देख शायद वो तिरा आईना हो

सलीम शाहिद

खुलती है गुफ़्तुगू से गिरह पेच-ओ-ताब की

सलीम शाहिद

फिर जी उठे हैं जिस से वो इम्कान तुम नहीं

सलीम कौसर

रूह को पहले ख़ाकसार किया

साजिद हमीद

प्यार का तोहफ़ा

साहिर लुधियानवी

फिर वही कुंज-ए-क़फ़स

साहिर लुधियानवी

ख़ुद-कुशी से पहले

साहिर लुधियानवी

दौर-ए-चर्ख़-ए-कबूद जारी है

साहिर होशियारपुरी

वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी

साग़र सिद्दीक़ी

तुम्हारे आलम से मेरा आलम ज़रा अलग है

साबिर

कली चमन में खिली तो मुझे ख़याल आया

रियाज़ ख़ैराबादी

ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की

रियाज़ ख़ैराबादी

तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे

रियाज़ ख़ैराबादी

पैमाने में वो ज़हर नहीं घोल रहे थे

रियाज़ ख़ैराबादी

इक परी का फिर मुझे शैदा किया

रिन्द लखनवी

आँखों में किसी याद का रस घोल रही हूँ

रेहाना क़मर

क्या सितम कर गई ऐ दोस्त तिरी चश्म-ए-करम

रविश सिद्दीक़ी

जिस की गिरह में माल नहीं है

रशीद रामपुरी

तुझ से भी हसीं है तिरे अफ़्कार का रिश्ता

रशीद क़ैसरानी

कितनी आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है

राजेश रेड्डी

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