हाल Poetry (page 2)

साफ़ आईना है क्यूँ मुझे धुँदला दिखाई दे

ज़ुबैर फ़ारूक़

आँखों में है बसा हुआ तूफ़ान देखना

ज़ुबैर फ़ारूक़

ज़ेहन परेशाँ हो जाता है और भी कुछ तन्हाई में

ज़ुबैर अमरोहवी

बार-ए-ग़म-ए-जहाँ भी है तेरा ख़याल भी

ज़ोहरा नसीम

अब दिल है उन के हल्क़ा-ए-दाम-ए-जमाल में

ज़ोहरा नसीम

जब भी तुझे देखा किसी बोहरान में देखा

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

उफ़्ताद तबीअत से इस हाल को हम पहुँचे

ज़िया जालंधरी

मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ

ज़िया जालंधरी

कैसे दुख कितनी चाह से देखा

ज़िया जालंधरी

दिल ही दिल में सुलग के बुझे हम और सहे ग़म दूर ही दूर

ज़िया जालंधरी

जल-परी है तो वो तस्ख़ीर भी हो सकती है

ज़ीशान साजिद

जल-परी है तो वो तस्ख़ीर भी हो सकती है

ज़ीशान साजिद

किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं

ज़ेबा

फ़िल्मी इश्क़

ज़रीफ़ जबलपूरी

जिस्म ताज़ा गुलाब की सूरत

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

फ़िक्र में डूबे थे सब और बा-हुनर कोई न था

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

दरीदा-जैब गरेबाँ भी चाक चाहता है

ज़की तारिक़

हुस्न जिस हाल में नज़र आया

ज़की काकोरवी

ख़ामोशी ख़ुद अपनी सदा हो ये भी तो हो सकता है

ज़का सिद्दीक़ी

तुम अपनी ज़ुल्फ़ से पूछो मिरी परेशानी

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

ना-तवानी में पलक को भी हिलाया न गया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

न पर्दा खोलियो ऐ इश्क़ ग़म में तू मेरा

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

क्यूँ आईने में देखा तू ने जमाल अपना

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

तू बेवफ़ा है तिरा ए'तिबार कौन करे

ज़ैग़म हमीदी

कुछ ऐसे हाल-ओ-माज़ी तेरे अफ़्साने भी होते हैं

ज़ेब बरैलवी

दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं

ज़हीर अहमद ताज

इल्ज़ाम बता कौन मिरे सर नहीं आया

ज़ाहिदुल हक़

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