तुम अपनी ज़ुल्फ़ से पूछो मिरी परेशानी
कि हाल उस को है मालूम हू-ब-हू मेरा
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रात याद-ए-निगह-ए-यार ने सोने न दिया
कर दिया तीरों से छलनी मुझे सारा लेकिन
अच्छा हुआ कि दम शब-ए-हिज्राँ निकल गया
इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते
दम का आना तो बड़ी बात है लब पर 'आरिफ़'
पानी निकल के दश्त में जारी है जा-ब-जा
हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं
हर घड़ी चलती है तलवार तिरे कूचे में
हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया
सब से बेहतर है कि मुझ पर मेहरबाँ कोई न हो
न आए सामने मेरे अगर नहीं आता