हिजाब Poetry (page 5)

जल्वा-गर सोचों में हैं कुछ आगही के आफ़्ताब

हनीफ़ साजिद

जोश-ओ-ख़रोश पर है बहार-ए-चमन हनूज़

हैदर अली आतिश

ग़ैरत-ए-महर रश्क-ए-माह हो तुम

हैदर अली आतिश

चमन में शब को जो वो शोख़ बे-नक़ाब आया

हैदर अली आतिश

पी हम ने बहुत शराब तौबा

हफ़ीज़ जौनपुरी

'इक़बाल' के मज़ार पर

हफ़ीज़ जालंधरी

वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे

हफ़ीज़ जालंधरी

मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई

हफ़ीज़ होशियारपुरी

इश्क़ में हर नफ़स इबादत है

हफ़ीज़ बनारसी

इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा था

हफ़ीज़ बनारसी

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

देख लो तुम ख़ू-ए-आतिश ऐ क़मर शीशे में है

हबीब मूसवी

तिश्ना-ए-तकमील है वहशत का अफ़्साना अभी

ग्यान चन्द मंसूर

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

तसल्ली को हमारी बाग़बाँ कुछ और कहता है

ग़ुबार भट्टी

जज़ीरे हों कि वो सहरा हों ख़्वाब होना है

ग़यास मतीन

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ग़ालिब

महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का

ग़ालिब

करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़

ग़ालिब

कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में

ग़ालिब

जराहत तोहफ़ा अल्मास अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया

ग़ालिब

हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है

ग़ालिब

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

ग़ालिब

माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ

गणेश बिहारी तर्ज़

गुज़र रही है मगर ख़ासे इज़्तिराब के साथ

फ़ुज़ैल जाफ़री

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया

फ़िराक़ गोरखपुरी

तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया

फ़िगार उन्नावी

हस्ती इक नक़्श-ए-इनइकासी है

फ़िगार उन्नावी

कभी तो हर्फ़-ए-दुआ यूँ ज़बाँ तलक आए

फ़सीहुल्ला नक़ीब

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