हिजाब Poetry (page 3)

सोहबत-ए-वस्ल है मसदूद हैं दर हाए हिजाब

शाद लखनवी

अब उन्हें मुझ से कुछ हिजाब नहीं

शबनम रूमानी

मुरत्तब हो के इक महशर ग़ुबार-ए-दिल से निकलेगा

सीमाब अकबराबादी

इश्क़ ख़ुद माइल-ए-हिजाब है आज

सीमाब अकबराबादी

हम हैं सर-ता-बा-पा तमन्ना

सीमाब अकबराबादी

छुपाता हूँ मगर छुपता नहीं दर्द-ए-निहाँ फिर भी

सीमाब अकबराबादी

बड़ी दिलचस्पियों से सुब्ह-ए-शाम-ए-ज़िंदगी होगी

सीमाब अकबराबादी

अब क्या बताऊँ मैं तिरे मिलने से क्या मिला

सीमाब अकबराबादी

तमाम जिस्म की उर्यानियाँ थीं आँखों में

साक़ी फ़ारुक़ी

ये कौन आया शबिस्ताँ के ख़्वाब पहने हुए

साक़ी फ़ारुक़ी

वो ख़ुश-ख़िराम कि बुर्ज-ए-ज़वाल में न मिला

साक़ी फ़ारुक़ी

रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ

साक़ी फ़ारुक़ी

अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा

साक़ी फ़ारुक़ी

कभी मिली है जो फ़ुर्सत तो ये हिसाब किया

सलीम शुजाअ अंसारी

कौन कहता है कि यूँही राज़दार उस ने किया

सलीम सिद्दीक़ी

दिल इज़्तिराब में है जिगर इल्तिहाब में

साइब आसमी

नूर-ए-ईमाँ सुर्मा-ए-चश्म-ए-दिल-ओ-जाँ कीजिए

साहिर देहल्वी

मस्त-ए-निगाह-ए-नाज़ का अरमाँ निकालिए

साहिर देहल्वी

जवाज़-ए-आब-ओ-ताब अब गुलाब के लिए नहीं

सहबा वहीद

इश्क़ क्या है ख़ुद-फ़रामोशी मुसलसल इज़्तिराब

सग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी

अब उठाओ नक़ाब आँखों से

साबिर दत्त

नया शगूफ़ा इशारा-ए-यार पर खिला है

सबा नक़वी

होते ही जवाँ हो गए पाबंद-ए-हिजाब और

साइल देहलवी

हम भी पिएँ तुम्हें भी पिलाएँ तमाम रात

रियाज़ ख़ैराबादी

आप अपनी नक़ाब है प्यारे

रियासत अली ताज

मुझे ग़रज़ है सितारे न माहताब के साथ

रहमान फ़ारिस

यार को बेबाकी में अपना सा हम ने कर लिया

रज़ा अज़ीमाबादी

उम्र-ए-अबद से ख़िज़्र को बे-ज़ार देख कर

रविश सिद्दीक़ी

सुकूँ है हमनवा-ए-इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता

रविश सिद्दीक़ी

ख़ल्वती-ए-ख़याल को होश में कोई लाए क्यूँ

रविश सिद्दीक़ी

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