हिजाब Poetry (page 8)

बर्बाद-ए-तमन्ना पे इताब और ज़ियादा

असरार-उल-हक़ मजाज़

परदेसी का ख़त

असरा रिज़वी

अबस अबस तुझे मुझ से हिजाब आता है

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

उस जल्वा-गाह-ए-हुस्न में छाया है हर तरफ़

असग़र गोंडवी

मुझ को ख़बर रही न रुख़-ए-बे-नक़ाब की

असग़र गोंडवी

इक अदा इक हिजाब इक शोख़ी

असग़र गोंडवी

ज़ौक़-ए-सरमस्ती को महव-ए-रू-ए-जानाँ कर दिया

असग़र गोंडवी

रक़्स-ए-मस्ती देखते जोश-ए-तमन्ना देखते

असग़र गोंडवी

जान-ए-नशात हुस्न की दुनिया कहें जिसे

असग़र गोंडवी

इश्क़ है इक कैफ़-ए-पिन्हानी मगर रंजूर है

असग़र गोंडवी

रुमूज़-ए-मोहब्बत

असर सहबाई

लुत्फ़ गुनाह में मिला और न मज़ा सवाब में

असर सहबाई

वो उन का हिजाब और नज़ाकत के नज़ारे

असर रामपुरी

फ़र्क़ इतना है कि तू पर्दे में और मैं बे-हिजाब

असद भोपाली

ज़िंदगी का हर नफ़स मम्नून है तदबीर का

असद भोपाली

वो क्या लिखता जिसे इंकार करते भी हिजाब आया

आरज़ू लखनवी

हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा

अर्शी रामपुरी

हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा

अर्शी रामपुरी

चश्मक-ज़नी में करती नहीं यार का लिहाज़

अरशद अली ख़ान क़लक़

न हर्फ़-ए-शौक़ न तर्ज़-ए-बयाँ से आती है

अरमान नज्मी

वो पर्दे से निकल कर सामने जब बे-हिजाब आया

अनवर सहारनपुरी

गुम कर दें इक ज़रा तुझे ख़्वाबों के शहर में

अनवर मीनाई

उन से हम लौ लगाए बैठे हैं

अनवर देहलवी

हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का

अनवर देहलवी

देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था

अनवर देहलवी

आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ

अनवर देहलवी

कोई अदा-शनास-ए-मोहब्बत हमें बताए

अंदलीब शादानी

मिरी बात का जो यक़ीं नहीं मुझे आज़मा के भी देख ले

आनंद नारायण मुल्ला

ख़्वाब जो बिखर गए

आमिर उस्मानी

कहा जो मैं ने कि यूसुफ़ को ये हिजाब न था

अमीर मीनाई

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