हिजाब Poetry (page 7)

पयामी कामयाब आए न आए

दाग़ देहलवी

मचलेंगे उन के आने पे जज़्बात सैंकड़ों

चरख़ चिन्योटी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

पास-ए-अदब मुझे उन्हें शर्म-ओ-हया न हो

बेदम शाह वारसी

काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए

बेदम शाह वारसी

जिगर-गुदाज़ मआ'नी समझ सको तो कहूँ

बेबाक भोजपुरी

या रब न हिन्द ही में ये माटी ख़राब हो

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

कहता है कौन हिज्र मुझे सुब्ह ओ शाम हो

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

बशीर बद्र

ताबिश-ए-हुस्न हिजाब-ए-रुख़-ए-पुर-नूर नहीं

बर्क़ देहलवी

रुख़ जो ज़ेर-ए-सुंबल-ए-पुर-पेच-ओ-ताब आ जाएगा

ज़फ़र

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

क्या कुछ न किया और हैं क्या कुछ नहीं करते

ज़फ़र

दमक उठी है फ़ज़ा माहताब-ए-ख़्वाब के साथ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

यादों का जज़ीरा शब-ए-तन्हाई में

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

उठा के मेरे ज़ेहन से शबाब कोई ले गया

अज़ीज़ तमन्नाई

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

दिल कुश्ता-ए-नज़र है महरूम-ए-गुफ़्तुगू हूँ

अज़ीज़ लखनवी

चश्म-ए-साक़ी का तसव्वुर बज़्म में काम आ गया

अज़ीज़ लखनवी

शोख़ी से कश्मकश नहीं अच्छी हिजाब की

अज़ीज़ हैदराबादी

चराग़-ए-क़ुर्ब की लौ से पिघल गया वो भी

अय्यूब ख़ावर

दरमियान-ए-गुनाह-ओ-सवाब आदमी

आतिफ़ ख़ान

अन-गिनत अज़ाब हैं रतजगों के दरमियाँ

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

भटक रही है 'अता' ख़ल्क़-ए-बे-अमाँ फिर से

अताउल हक़ क़ासमी

भटक रही है 'अता' ख़ल्क़-ए-बे-अमाँ फिर से

अताउल हक़ क़ासमी

इधर भी आ

असरार-उल-हक़ मजाज़

सीने में उन के जल्वे छुपाए हुए तो हैं

असरार-उल-हक़ मजाज़

मिरी वफ़ा का तिरा लुत्फ़ भी जवाब नहीं

असरार-उल-हक़ मजाज़

कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं

असरार-उल-हक़ मजाज़

हुस्न को बे-हिजाब होना था

असरार-उल-हक़ मजाज़

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