हिजाब Poetry (page 9)

तुम और हम

अमीक़ हनफ़ी

ऐ अज़ल से....

अमीक़ हनफ़ी

दिल को दर्द-आश्ना किया तू ने

अल्ताफ़ हुसैन हाली

इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में

अल्लामा इक़बाल

ज़ौक़ ओ शौक़

अल्लामा इक़बाल

इबलीस की मजलिस-ए-शूरा

अल्लामा इक़बाल

हज़रात-ए-इंसाँ

अल्लामा इक़बाल

ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब

अल्लामा इक़बाल

मिटा दिया मिरे साक़ी ने आलम-ए-मन-ओ-तू

अल्लामा इक़बाल

ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील

अल्लामा इक़बाल

ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं

अल्लामा इक़बाल

गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर

अल्लामा इक़बाल

दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी

अल्लामा इक़बाल

अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर

अल्लामा इक़बाल

नूर-ए-हक़ बे-हिजाब इश्क़-अल्लाह

अलीमुल्लाह

गर इश्क़ है तो देखने पिव को शिताब आ

अलीमुल्लाह

सवाद-ए-शौक़-ओ-तलब ग़म का बाब ऐसा था

अली वजदान

बहुत क़रीब हो तुम

अली सरदार जाफ़री

सिवाए-दर-ब-दरी उस को ख़ाक मिलता है

आलमताब तिश्ना

गुज़रते दौड़ते लम्हे हिसाब में लिखिए

अकमल इमाम

माना कि सब के सामने मिलने से है हिजाब

अख़्तर शीरानी

नज़्र-ए-वतन

अख़्तर शीरानी

बरखा-रुत

अख़्तर शीरानी

वादा उस माह-रू के आने का

अख़्तर शीरानी

उन को बुलाएँ और वो न आएँ तो क्या करें

अख़्तर शीरानी

कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था

अकबर हैदराबादी

बस इक तसलसुल-ए-तकरार-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी था

अकबर हैदराबादी

मुलाक़ातें नहीं फिर भी मुलाक़ातें

ऐन ताबिश

सो हश्र में लिए दिल-ए-हसरत मआब में

अहसन मारहरवी

बाहम जो हुस्न ओ इश्क़ में याराना हो गया

अहसन मारहरवी

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