होश Poetry (page 17)

हम को इतना भी रिहाई की ख़ुशी में नहीं होश

आरज़ू लखनवी

वअ'दा सच्चा है कि झूटा मुझे मालूम न था

आरज़ू लखनवी

फेर जो पड़ना था क़िस्मत में वो हस्ब-ए-मामूल पड़ा

आरज़ू लखनवी

किस मस्त अदा से आँख लड़ी मतवाला बना लहरा के गिरा

आरज़ू लखनवी

जहाँ कि है जुर्म एक निगाह करना

आरज़ू लखनवी

गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया

आरज़ू लखनवी

दूर थे होश-ओ-हवास अपने से भी बेगाना था

आरज़ू लखनवी

हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा

अर्शी रामपुरी

हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा

अर्शी रामपुरी

निगाह तेज़ शुऊ'र-ए-बुलंद रखते हैं

अर्शी भोपाली

यगाना उन का बेगाना है बेगाना यगाना है

अरशद अली ख़ान क़लक़

था क़स्द-ए-क़त्ल-ए-ग़ैर मगर मैं तलब हुआ

अरशद अली ख़ान क़लक़

शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है

अरशद अली ख़ान क़लक़

बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई

अरशद अली ख़ान क़लक़

दरवाज़ा तिरे शहर का वा चाहिए मुझ को

अर्श सिद्दीक़ी

इक बे-निशान हर्फ़-ए-सदा की तरफ़ न देख

अरमान नज्मी

मुझे महरूमियों का ग़म नहीं है

आरिफ़ अब्बास

खींच कर तलवार जब तर्क-ए-सितमगर रह गया

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

पियो कि मा-हसल-ए-होश किस ने देखा है

अनवर शऊर

बशारत हो कि अब मुझ सा कोई पागल न आएगा

अनवर शऊर

दीवार पर लिखा न पढ़ो और ख़ुश रहो

अनवर सदीद

ज़ुल्मतों में रौशनी की जुस्तुजू करते रहो

अनवर साबरी

वक़्त जब करवटें बदलता है

अनवर साबरी

हर साँस में ख़ुद अपने न होने का गुमाँ था

अनवर साबरी

रुख़ से पर्दा उठा दे ज़रा साक़िया बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जाएगा

अनवर मिर्ज़ापुरी

कहाँ तक मुझ को ठुकराएगी दुनिया

अनवर ख़ान

देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था

अनवर देहलवी

एक महबूस नज़्म

अंजुम सलीमी

हर चंद उन्हें अहद फ़रामोश न होगा

अंजुम रूमानी

वाइ'ज़ की कड़वी बातों को कब ध्यान में अपने लाते हैं

अंजुम मानपुरी

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