होश Poetry (page 21)

ख़्वाब की बस्ती में अफ़्साने का घर

अब्दुल मन्नान तरज़ी

हम-नफ़सो उजड़ गईं मेहर-ओ-वफ़ा की बस्तियाँ

अब्दुल मजीद सालिक

ज़बान-ए-होश से ये कुफ़्र सरज़द हो नहीं सकता

अब्दुल हमीद अदम

साक़ी ज़रा निगाह मिला कर तो देखना

अब्दुल हमीद अदम

आप इक ज़हमत-ए-नज़र तो करें

अब्दुल हमीद अदम

वो अहद-ए-जवानी वो ख़राबात का आलम

अब्दुल हमीद अदम

मुश्किल ये आ पड़ी है कि गर्दिश में जाम है

अब्दुल हमीद अदम

मतलब मुआ'मलात का कुछ पा गया हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

मय-ख़ाना-ए-हस्ती में अक्सर हम अपना ठिकाना भूल गए

अब्दुल हमीद अदम

ख़ुश हूँ कि ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया

अब्दुल हमीद अदम

गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर

अब्दुल हमीद अदम

भूले से कभी ले जो कोई नाम हमारा

अब्दुल हमीद अदम

आता है कौन दर्द के मारों के शहर में

अब्दुल हमीद अदम

आप की आँख अगर आज गुलाबी होगी

अब्दुल हमीद अदम

ख़बर के मोड़ पे संग-ए-निशाँ थी बे-ख़बरी

अब्दुल अहद साज़

बोल थे दिवानों के जिन से होश वालों ने

अब्दुल अहद साज़

सोच कर भी क्या जाना जान कर भी क्या पाया

अब्दुल अहद साज़

लफ़्ज़ों के सहरा में क्या मा'नी के सराब दिखाना भी

अब्दुल अहद साज़

खुली जब आँख तो देखा कि दुनिया सर पे रक्खी है

अब्दुल अहद साज़

दरख़्त रूह के झूमे परिंद गाने लगे

अब्दुल अहद साज़

बद-सोहबतों को छोड़ शरीफ़ों के साथ घूम

अब्दुल अहद साज़

हम बर्क़-ओ-शरर को कभी ख़ातिर में न लाए

आल-ए-अहमद सूरूर

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