बोल थे दिवानों के जिन से होश वालों ने
सोच के धुँदलकों में अपना रास्ता पाया
Rahat Indori
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जाने क़लम की आँख में किस का ज़ुहूर था
आरज़ू
नज़र आसूदा-काम-ए-रौशनी है
'साज़' जब खुला हम पर शेर कोई 'ग़ालिब' का
खिले हैं फूल की सूरत तिरे विसाल के दिन
दरख़्त रूह के झूमे परिंद गाने लगे
यूँ भी दिल अहबाब के हम ने गाहे गाहे रक्खे थे
लफ़्ज़ों के सहरा में क्या मा'नी के सराब दिखाना भी
इक ईमा इक इशारा मर रहा है
शिरकत
मुफ़्लिसी भूक को शहवत से मिला देती है
दिल-दही