एक महबूस नज़्म

दरवाज़ा पीटा जा रहा है

मेरे जिस्म पर ज़ख़्म और नील, हरे होते जा रहे हैं

मुझे याद आया

गंदी गालियाँ और मैले बूटों की भारी एड़ियाँ

मेरे आसाब और जिस्म को शल कर रही थीं

कंधों कूल्हों और रानों पर

बद-बू-दार दाँतों के निशान

दहकती सलाख़ों से मिटाने की कोशिश भी की गई

मैं ऊँची खिड़की से छलांग लगा सकता था!

मगर सादा काग़ज़ पर दस्तख़त के बग़ैर

मुझे इस सुहुलत की इजाज़त भी नहीं दी गई

वो सब मेरे ज़िंदा हाथों से ज़्यादा

मेरी मुर्दा आँखों से ख़ौफ़-ज़दा थे शायद

मैं ने उन्हें बता दिया था

कि मैं सिर्फ़ बे-मक़्सद ज़िंदगी

और बे वक़अत मौत से डरता हूँ

मैं ने कहा

ज़ख़्मी दाँतों के साथ मुझ से हँसा नहीं जाता

लाओ काग़ज़ इधर लाओ

मैं उस पर एक ज़ोर-दार क़हक़हा लिख कर दस्तख़त कर दूँ

मुझे याद है

वो थक हार के बेहोश होने चले गए थे

गंदी गालियों और बूटों की

भारी एड़ियों के साथ

दरवाज़ा फिर पीटा जा रहा है!

(783) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ek Mahbus Nazm In Hindi By Famous Poet Anjum Saleemi. Ek Mahbus Nazm is written by Anjum Saleemi. Complete Poem Ek Mahbus Nazm in Hindi by Anjum Saleemi. Download free Ek Mahbus Nazm Poem for Youth in PDF. Ek Mahbus Nazm is a Poem on Inspiration for young students. Share Ek Mahbus Nazm with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.