एक ताबीर की सूरत नज़र आई है इधर
सो उठा लाया हूँ सब ख़्वाब पुराने वाले
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तख़्लीक़ की साअतों में
मुझे पता है कि बर्बाद हो चुका हूँ मैं
एक क़दीम ख़याली की निगरानी में
हम बे-वतन ख़्वाबों के जोलाहे हैं
हवा का तख़्त बिछाता हूँ रक़्स करता हूँ
बस अंधेरे ने रंग बदला है
बे-मसरफ़ रिश्तों की फ़राग़त
सब को अपने ज़ेहन से झटका ख़ुद को याद किया
मेरी मिट्टी से बहुत ख़ुश हैं मिरे कूज़ा-गर
खुली हुई है जो कोई आसान राह मुझ पर
एक दिन मेरी ख़ामुशी ने मुझे
वो इक दिन जाने किस को याद कर के