बस अंधेरे ने रंग बदला है
दिन नहीं है सफ़ेद रात है ये
Anwar Masood
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Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
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मैं जब वजूद से होते हुए गुज़रता हूँ
मैं एक एक तमन्ना से पूछ बैठा हूँ
इक दूजे को देर से समझा देर से यारी की
गिर्या
मैं आज ख़ुद से मुलाक़ात करने वाला हूँ
ख़ुद अपने हाथ से क्या क्या हुआ नहीं मिरे साथ
ऐसी क्या बीत गई मुझ पे कि जिस के बाइस
मेरे चेहरे पे हैं आँखें मिरे सीने में है दिल
सुल्ह के बअ'द मोहब्बत नहीं कर सकता मैं
मैं चीख़ता रहा कुछ और भी है मेरा इलाज
मिट के आसूदा हो गया हूँ मैं
एक बे-नाम उदासी से भरा बैठा हूँ