एक बे-नाम उदासी से भरा बैठा हूँ
आज दिल खोल के रोने की ज़रूरत है मुझे
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जस्त भरता हुआ फ़र्दा के दहाने की तरफ़
इंहिराफ़
हिज्र को बीच में नहीं छोड़ा
दर्द से भरता रहा ज़ात के ख़ाली-पन को
मैं आज ख़ुद से मुलाक़ात करने वाला हूँ
अपनी तस्दीक़ मुझे तेरी गवाही से हुई
चल तो सकता था मैं भी पानी पर
विसाल की तीसरी सम्त
पुराना ज़हर नए नाम से मिला है मुझे
तुझ से ये कैसा तअल्लुक़ है जिसे जब चाहूँ
किस शफ़क़त में गुँधे हुए मौला माँ बाप दिए
हिज्र में भी हम एक दूसरे के