हिज्र में भी हम एक दूसरे के
आमने सामने पड़े हुए थे
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Rahat Indori
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
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एक दिन मेरी ख़ामुशी ने मुझे
बस एक जिस्म एक ही क़द में पड़ा रहूँ
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'
मेरी मिट्टी से बहुत ख़ुश हैं मिरे कूज़ा-गर
मुझ से ख़ाली है मेरा आईना
सहर को खोज चराग़ों पे इंहिसार न कर
किस ने आबाद किया है मरी वीरानी को
मुझे पता है कि बर्बाद हो चुका हूँ मैं
ठीक से याद भी नहीं अब तो
किस ज़माने में मुझ को भेज दिया
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ