किस ने आबाद किया है मरी वीरानी को
इश्क़ ने? इश्क़ तो बीमार पड़ा है मुझ में
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ख़ुद तक मिरी रसाई नहीं हो रही अभी
ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है
बुझने दे सब दिए मुझे तन्हाई चाहिए
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ
एक महबूस नज़्म
मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी
जब ख़ुदा भी नहीं था साथ मरे
पत्थर में कौन जोंक लगाएगा मेरे दोस्त
मैं जब वजूद से होते हुए गुज़रता हूँ
सख़्त मुश्किल में किया हिज्र ने आसान मुझे
आइंदगाँ की उदासी में