ख़्वाब शर्मिंदा-ए-विसाल हुआ
हिज्र में नींद आ गई थी मुझे
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एक दिन मेरी ख़ामुशी ने मुझे
आईना साफ़ था धुँदला हुआ रहता था मैं
एक और मुुहब्बत....
तन्हाई का सफ़रनामा
मैं तुम्हारे लिए ले के आया हूँ
आँख खुल कर अभी मानूस नहीं हो पाती
मैं दिल-ए-गिरफ़्ता तुझे गुनगुनाता रहता हूँ
इतना बे-ताब न हो मुझ से बिछड़ने के लिए
सुल्ह के बअ'द मोहब्बत नहीं कर सकता मैं
तुझ से ये कैसा तअल्लुक़ है जिसे जब चाहूँ
दर्द से भरता रहा ज़ात के ख़ाली-पन को
बस एक जिस्म एक ही क़द में पड़ा रहूँ