खुली हुई है जो कोई आसान राह मुझ पर
मैं उस से हट के इक और रस्ता बना रहा हूँ
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अध-बुने ख़्वाबों का अम्बार पड़ा है दिल में
पत्थर में कौन जोंक लगाएगा मेरे दोस्त
ज़मीन हाँपने लगती है इक जगह रुक कर
आगे बिछी पड़ी रहीं उस के बदन की नेमतें
मेरी मिट्टी से बहुत ख़ुश हैं मिरे कूज़ा-गर
एक क़दीम ख़याली की निगरानी में
तेरे अंदर की उदासी के मुशाबह हूँ मैं
मैं जब वजूद से होते हुए गुज़रता हूँ
कर रहा हूँ तुझे ख़ुशी से बसर
इश्क़ फ़रमा लिया तो सोचता हूँ
एक ताबीर की सूरत नज़र आई है इधर
सभी दरवाज़े खुले हैं मिरी तन्हाई के